Thursday, February 7, 2019

After a long time , a new post

 I found that travel keeps me young and healthy, travelling for me is like recharging my batteries and rejuvenating for Future.

after I stop writing on this blog , a few years ago; I I finished my Masters in yoga this was followed by my bachelors in tourism some 8 years ago.

I have been traveling extensively within India and also abroad one of the most memorable trips I had was to Pnom Penh where I visited the remains of those old temples in siem reap. Bali was also a good experience. Within India I travel toto ma places,  some of them were with my kailash yatrees, some with my family and with other friends.

Himalayas fascinate me most and I wish I could travel to that place more often.

Moving to the city of Bengaluru in 2016 was a good decision we spent very good time and roam around in South India with family and friends many times. During this time I visited Mysore nagarhole kabini bandipur Ooty hampi chitradurga and some other destinations near by. This was a very good bouquet of wildlife, historical places, monuments, culture, and adventure. it was yesterday that I remembered my blog and thought of reviving it once again and I will try to be regular and future.

I have some more trips lined up in future one of them is either to Shimla or to Jaisalmer in the mid of February 2019, after that in the month of March we are going to USA to meet Asia and we will also visit Houston and Seattle Mr Ashok and Kamal respectively. 

Thursday, September 5, 2013

Teerthan Valley


आकस्मिक बने यात्रा कार्यक्रम कभी कभी बहुत यादगार हो जाते हैं, ऐसा ही एक कार्यक्रम हमारे एक मित्र के भी मित्र कि सलाह पर हमने बनाया सन् 2013 के अगस्त महीने के अंत में. जगह थी तीर्थन वैली। अक्सर में किसी जगह जाने का प्लान बनाता हू तो उस जगह के बारे में अच्छे से पढ़ कर समझ कर ही जाता हूँ, पर तीर्थन वैलि जाने से पहले , इसके बारे में  कुच्छ भी नहीं पता था, सिर्फ एक मित्र की सलाह से ही यहा जाने का प्लान बना लिया।
 हम लोग रात के 11 बजे, एक टेम्पो त्रवेलेर में बैठ कर चल पड़े, मेरे स्वयं के अनुभव से यह कोई उचित निर्णय नही था, परन्तु बाकी सहयात्रियों के आग्रह के कारण हम रात 11 बजे ही निकले , मेरे अनुभव से सुबह सवेरे 3 और 4 बजे के बीच का समय किसी भी यात्रा के प्रारंभ के लिए अति उपयुक्त होता है, रात के समय के सड़क की नकारात्मकता सुबह की सकाराक्तकता   में बदल जाती है, मेडिकल साइन्स के हिसाब से भी यदि रात 9 से 12 की नींद ले ली जाए तो अगले दिन के लिए काफी होती है। नई यात्रा की उत्सुकता पहली रात सोने नहीं देती और यह एक बहुत बुरी बात है। एक रात पूरी यदि बिना सोये गुज़ार दी जाए तो उसका शरीर और मस्तिष्क पर बहुत कुप्रभाव पड़ता है।

तीर्थन वैलि हिमाचल प्रदेश में, कुल्लू के पास है, तीर्थन नदी के किनारे यह शाई रोपा नामक और गुशेनी में कुच्छ बहुत सुंदर गेस्ट हाउस बने हें, यहाँ ठहरना अपने आप में एक सुखद अनुभव है, यहाँ पहुँचने का रास्ता दिल्ली से अंबाला होते हुए रोपड़ और मंडी से हो कर जाता है, औट से कुच्छ किलोमीटर पहले ही (सुरंग शुरू हो से पहले) , एक सड़क, दायें से हो कर जाती है, जोजलोड़ी पास’ हो कर लाहौल वैलि में चली जाती है, पर हम लोग जलोड़ी पास से करीब 20 Kms पहले से बाएँ मूड गए और फिर करीब घंटे भर की ड्राइव के बाद हम शाई रोपा में अपने "तीर्थन वैलि गेस्ट हाउस " में पहुँच गए, हमारी गाड़ी और गेस्ट हाउस के बीच से करीब 100 फुट चौड़ी तीर्थन नदी गुज़र रही थी और पानी का वेग बहुत अधिक था, इसको पार करने के लिए एक लोहे की तार पर पुल्ली में एक लोहे की बास्केट लगी  थी, जिस पर चढ़ कर हम लोगो ने इस नदी को एक - एक कर पार किया, इस तरह स्थानीय निवासियों को नदी पार करते अक्सर देखा था, पर स्वयं इसका अनुभव अपने आप में काफी romanchak लगा। यहाँ पहुँच कर आराम किया और अगले दिन के ट्रेक की तयारी भी की। हम अपने गाइड, पोर्टर और कूक से मिल कर , अगले दिन के लिए टेंट, कूकिंग का समान और स्लीपिंग बैग आदि भी किराए पर ले लिए। अगले दिन हुमें बहुत जल्दी निकालना था। यहा से एक ट्रेक , ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क जाता है, जो की 6 से 7 दिन तक का ट्रेक है, हम लोगो ने केवल 12 किलोमीटर का छोटा ट्रेक करने का मन बनाया .

 

 

सुबह सवेरे तैयार हो कर हम लोग अपनी वेन से गुशाई विल्लेज की तरफ चल पड़े जो की करीब आधे घंटे की दूरी पर है, यह रास्ता मेंने अपनी बिटिया और एक मित्र के साथ वेन की छत पर बैठ कर तय किया, सुंदर मोसम  में सुंदर पहाड़ो के बीच यह रास्ता कब कट गया पता ही नहीं चला। गुशाई पहुँच कर, अपने पोर्टर और गाइड से फिर से मुलाकात हुई, और यहा से पैदल का सफर शुरू हो गया, करीब 2 से 3 घंटे चलने के बाद हम लोग G H N P (ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क) के gate तक पहुँच गए, रातसे भर, हम तीर्थन नदी के किनारे किनारे चले, काफी पहाड़ी झरने भी मिले, और किच्छ छोटे छोटे जंगली  जानवर भी दिखाई पड़े, खास चीज़ हमें मिली, भालू के पैरो के निशान, जो की हमारी ही दिशा में जा रहे थे, यह निशान देख कर सबसे पहले मेंने , अपने पाउच में रखे चाकू को चेक किया, मेंने जंगल में करीब करीब सभी जानवर देखे हें, लेकिन पैदल, भालू से आमने सामने मिलने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, भालू (हिमालयन) और किंग कोबरा, मेरी नज़र में केवल यही दो जानवर ऐसे हें, जिनसे में दूरी ही बनाए रखना चाहूँगा, यह दोनों ही शौकिया शिकार करते हें, और बिना छेड़े भी, शिकार का पीछा कर के उसको मारते हें, कभी कभी बिना भूख के भी, सो पैरो के निशान देख कर मन में सोचा की , भगवान इनसे आमना सामना हो तो ही अच्छा है। इसी रास्ते पर कुच्छ और जानवरो के निशान भी दिखे , एक जगह पैंथर के निशान भी बहुत देर तक साथ साथ चले।

 

G H N P के गाते पर पहुँच कर हम लोगो ने कुच्छ नाश्ता आदि किया और जगह का मुयएना भी किया, कुच्छ लोगो का मन, यही पर टेंट लगा कर रात गुजारने का था, पर सबकी इच्छा से हम लोग और आगे चल पड़े, और करीब 2 घंटे और चलने के बाद, हम .......... पहुंचे , रास्ते में एक बूढ़ी अम्मा की झोपड़ी भी मिली, यह बुधिया यहा अकेली रहती है , देख कर आश्चर्य हुआ, उसके घर से हमने वही की उगाई हुई कुच्छ राजमा खरीदी और आगे चल पड़े, हमारे मित्रा का एक लड़का, इस बीच , पोर्टेर्स के साथ , बिना बताए आगे निकाल गया, और एकाएक सभी बेचैन हो गए, में कुच्छ दूर तक जल्दीजल्दी गया ताकि बच्चे का कुच्छ पता चले, लेकिन, आगे रास्ता बहुत खराब था, और भालू के इस जंगल में बाकी लोगो को छोड़ कर जाना ठीक नहीं सकझा सो में वापस गया, सभी के साथ इस पहाड़ी ढलान वाले और कई जगह से टूटे रास्ते को पार कर हम ....पहुँच गए, यहा पर हमारे मित्र के सुपुत्र बाकी पोर्टेर्स आदि के साथ विराज मान थे, सो जान में जान आई, कुच्छ की आंखे भी भर आयीं और कुच्छ ने बच्चे को गुस्सा भी किया, खेँ अंत भला सो भला, रास्ते में कुच्छ जगह बहुत संकरी थी तो कुच्छ जगह लकड़ी के फट्टे या सीढ़ी दाल कर रास्ते बनाया था, उस पर सब बहुत थक गए थे, सो कुच्छ देर आराम करने के बाद सभी , नीचे नदी पर नहाने चले गए, सभी ने जब कर नहाया , और यही पर सबने दोपहर का खाना भी खाया। इसके बाद, हम लोगो पास ही की एक चट्टान पर rock climbing का बाजा भी लिया, हम सभी म्ने इस चट्टान को पूरा चढ़ा और यह अनुभव सभी को याद रहेगा। इसके बाद, हम सब एक जगह आग जला केर, उसके चारो  ओर बैठ गए, हमारे कूक्स ने हमारे लिए चाय नाश्ता बनाया, और गप्पें होने लगी,

अब अंधेरा होने को था, हुमें अंधेरे से पहले ही अपने टेंट और कमरे को सही से चेक आदि कर के उसमें सामान लगाना था, यहा पर अभी लाइट की व्यवस्था नहीं है, सो हम सब अपने एनपे स्लीपिंग बग्स खोल कर उसमें एक बार एलईटी कर फिर बाहर गए, एक युगल के लिए पास ही एक टेंट भी लगा दिया, और उन्होने भी आपसे लीपींग bags  चेक  कर लिए, धर्मपत्नी ने बताया की उन्होने एक सांप को , हमारे ही कमरे के नीचे जाते देखा है, सो मेंने उन्हे ताकीद की, की यह बात किसी और को बताएं, लेकिन इसके बाद मेंने कमरे के सभी गैप्स को एक कपड़ा फाड़ कर भर दिया, दरअसल, यहाँ घर लकड़ी के होते हें, और जमीन से कुच्छ इंच ऊपर उठा कर बनाए जाते हें ताकि लकड़ी जमीन के स्पर्श में कर ना  गले ,    सो सांप महाशय हमारे फट्टों के नीचे आराम फार्मा रहे थे और हमने उन फट्टों के ऊपर रात गुज़ारी। हाँ में रात भर ठीक से सो नाही सका, सांप का दर भी कम नहीं होता। इसके पहले, आते समय रास्ते में भी एक जगह सांपो का जोड़ा दिखाई दिया था, जो की हमने चुप छाप पार कर लिया था। अधिकतर सांप जहरीले नहीं होते, पर मुझे अभी सांपऑन की पहचान नहीं के बराबर है, सो अधिक रिस्क नहीं लिया।

 

अगले दिन बहुत सवेरे उठ कर, नित्या कर्म से निवृत्र हो कर, हम लोग वापस चल पड़े, धूप जल्दी ही निकाल आई थी और रास्ता लंबा था, हम एक बार फिर 'मोबाइल पॉइंट" पर चाय नाश्ते के लिए रुके, इसी जगह हम आते समय भी रुके थे, यहा से नज़ारा बहुत सुंदर , चाय नाश्ता कर के हम लोग फिर जलदो जल्दी गुशेनी की तरफ चल पड़े, जहा हमारे ड्राईवर साहब वेन पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे, रास्ते में रोपा विल्लेज में हमने बुरांश के फूलों का जूस पिया , यह सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है। रास्ते में एक पेड़ से बहुत से आड़ू भी तोड़े जो सबने खाये, रोपा विल्लेज में ही एक हनुमान जी का मंदिर भी है, जिसपे बनी लकड़ी की नक्काशी देखने योग्य है, यह नक्काशी पास ही के विल्लेज के एक कारीगर ने की है। यहा मक्का और फ्रूइट्स की ही खेती होती है, रास्ते भर कई जगह सेब के ढेर लगे देखे, पर पेड़ों पर बहुत कम ही सेब नज़र आया।  पेड़ों पर लड़े सेब को देखना , आंखो के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं होता, यह नज़ारा इस ट्रिप पर बहुत मिस किया। अपने गेस्ट हाउस हम लोग लंच टाइम तक पहुँच गए थे, और लंच कर के सभी ने पास ही के पनि के झरने पर जाने का मन बनाया। यह वॉटर फाल, हमारे गेस्ट हाउस से करीं 2 किलोमीटर की दूरी पर है, पर चढ़ाई बहुत खड़ी है, और रास्ता भी पथरीला है। पर वॉटर फाल को देख कर , राभर की थकान बिल्कुल चली गए, यह दृश्य सारी उम्र याद रहेगा, पानी पर पहुँच कर हम सब लोग झरने पर नहाये, पनि का वेग बहुत था, पानी के गिरने के शोर के आगे, हमें चिल्ला चिल्ला कर बोलना पड़ रहा था, यहा नहा कर आत्मा तृप्त हो गए, और पिच्छले दो दिन की थकान भी गायब  हो गई। शाम होने को थी सो, अधूरे मन से हम लोग वापस चल पड़े, वापसी का रास्ता आराम से कट गया क्योंकि काफी ढलान थी, पर यहा कुच्छ लोग लापरवाही के कारण से गिरे भी। गेस्ट हाउस पहुँचने से पहले हम पास ही के एक विल्लेज में गए और वह लोगो से बात की। अंधेरा होने से पहले ही हम लोग वापस अपने गेस्ट हाउस गए, अपना समान  पहले ही पैक पड़ा था, सो एक बार फिर सब लोग उस नदी के ऊपर बने झूले में बैठ कर नदी का आनंद ले कर गेस्ट हाउस में मैनेजर से विदा ले कर गाड़ी में कर बैठ गए, हमारा प्रोग्राम  जलोड़ी पास जा कर वह पर अगले दिन एक छोटा ट्रेक करने का था, पर सर्व सम्मति से हम लोग वापस दिल्ली की ओर चल पड़े, मंडी में हमने "शृंगार" रिज़ॉर्ट में पड़ाव दाल दिया, यहा पहुंचते रात हो गई थी और हमारे एक शुद्ध शाकाहारी मित्र को यहा भूखा ही सोना पड़ा। बाकी लोगो ने खाना खाया और सभी बहुत थके थे से जल्दी ही सो गए, अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर फिर सब गाड़ी में बैठ गए और दिल्ली का वापसी का सफर शुरू हो गया, करीब 2 बजे अंबाला के पास "हवेली" में खाना खाया, खाना बहुत स्वादिष्ट था, और सबको भूख भी लगी थी, सो खाने के साथ ही , चाट पकोड़ी का भी दौर चला, इसके बाद कुच्छ देर अंत्याक्षरी का प्रोग्राम गाड़ी में चला फिर रात होते होते दिल्ली गए। दिल्ली में कर वही traffic जाम, धुआँ , धूल और वही परेशानियाँ , ऐसा लगा स्वर्ग से नरक में गए। जाने क्या मजबूरी हें के दिल्ली छोड़ी नहीं जाती।

 

खेर, एक और यात्रा का सुखद अंत हुआ।